भारतीय मजदूर संघ उ.प्र. के 70 वर्ष की यात्रा

[18:22, 10/12/2024] +91 93055 90103: भारतीय मजदूर संघ की स्थापना के दो वर्ष पश्चात प्रदेश में महासंघ की स्थापना 1957 में हुई। स्थापना काल से ही ठेंगड़ी जी व बड़े भाई रामनरेश सिंह जी ने उत्तर प्रदेश में एक-एक जिले में भारतीय मजदूर संघ के कार्य की स्थापना कर कार्य को विस्तार दिया। ठेंगड़ी जी व बड़े भाई रामनरेश सिंह जी द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलकर आज मजदूर संघ का कार्य उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में पहुंच गया है और भारतीय मजदूर संघ का काम बहुत तेज से विस्तारित हो रहा है।

भारतीय मजदूर संघ के निर्माण की प्रक्रिया
भारत की आजादी से पूर्व अंग्रेज भारत के पास के संसाधनों का शोषण कर रहे थे। भारत केवल इंग्लैंड में चल रहे उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चे माल का उत्पादन कर रहा था। 1947 में भारत छोड़ने से पहले अंग्रेजों ने बड़ी मात्रा में दौलत लूट ली। उन्होंने अखंड देश को दो भागों में बांटकर देश के लोगों की राष्ट्रीय मानसिकता को कमजोर करने का प्रयास किया। जो स्वतंत्र भारत था, वह आर्थिक रूप से बहुत कमजोर था। एक ओर कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की स्थिति अत्यंत दयनीय और विचारोत्तेजक थी, वहीं दूसरी ओर कृषि और ग्रामीण श्रमिकों की दासता से ऊबकर कृषि क्षेत्र छोड़कर औद्योगिक क्षेत्र में काम करने की इच्छा प्रबल हो रही थी। उस समय देश में ऐसा कोई संगठन नहीं था जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने की इच्छा प्रबल हो रही थी। उस समय देश में ऐसा कोई संगठन नहीं था जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों की समस्याओं को हल करने में सक्षम हो। देश को निस्संदेह एक ऐसे ट्रेड यूनियन की आवश्यकता थी जो स्वतंत्र भारत के पुनर्जागरण के साथ-साथ श्रमिकों के भविष्य को सुरक्षित करने पर विचार करने वाला हो।
उस समय भारत के नेताओं के साथ-साथ उच्च वर्ग के लोग भी अपनी श्रेष्ठता को भूल चुके थे। इस प्रकार का माहौल पूरे देश में दिखाई देने लगा था। यहां तक कि इससे मजूदर क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा। इसका मुख्य कारण लोगों पर पाश्चात्य संस्कृति पर आधारित विचारधारा का प्रभाव होना। मजदूर क्षेत्र तब भी बहुत व्यापक क्षेत्र था और आज भी है, इसलिए ऐसे क्षेत्र में भारतीय विचारधारा पर आधारित संगठन की आवश्यकता थी। इस उद्देश्य की पूर्ति का दायित्व श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी को दिया गया।
वर्ष 1955 में दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने भारतीय मजदूर संघ की स्थापना 23 जुलाई 1955 को लोकमान्य तिलक जयंती के अवसर पर भोपाल में की। भारतीय मजदूर संघ का गठन एक युगीन घटना थी। इसका मुख्य कारण वह ऐसा दौर था जब विश्व राजनीतिक पटल पर तत्कालीन सोवियत संघ का दबदबा था। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, जो यूरोप और एशिया के कई देशों के साथ-साथ भारत में कम्युनिस्ट शासन के तहत चलाई गई थी, का जबरदस्त प्रभाव था। दुनिया के एक तिहाई हिस्से पर मार्क्सवादियों का लाल झंडा लहरा रहा था।
भारतीय मजदूर संघ के गठन के पीछे मुख्य भूमिका उस प्रकार के श्रमिक संगठन के निर्माण की थी जिसकी इस देश को आवश्यकता है। देश को एक पारदर्शी मजदूर संघ की जरुरत थी। एक पारदर्शी मजदूर संघ यह एक ऐसा संगठन जदो श्रमिकों का है, श्रमिकों के लिए है और श्रमिकों द्वारा चलाया जाता है। इस प्रकार का श्रमिक संगठन जो हर तरह से स्वतंत्र, प्रभावी और अराजनैतिक हो।
इस तरह के श्रमिक संगठन बनाने से पहले, एक प्रमुख बिंदु पर विचार किया जाना था कि संगठन का वैचारिक आधार क्या होना चाहिए। भारतीय मजदूर संघ का निर्माण भारतीय विचार, हिन्दू विचार, यानी जो हमारे ऋषियों ने संगठन के बारे में बहुत पहले कहा था जो हमारी परंपराएं हैं वैसे ही राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता इस त्रिसूत्री के आधार पर हुआ है। इसलिए सभाओं, जुलूसों, धरना आंदोलनों आदि अनेक आयोजनों में ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाया जाता है। श्रमिकों में प्रखर राष्ट्रवाद की प्रेरणा जागृत करने के साथ-साथ राष्ट्र हित, श्रमिक हित और औद्योगिक हित को प्राप्त करना यही भारतीय मजदूर संघ का ध्येय तथा आधारभूत सिद्धांत है।
भारतीय मजदूर संघ की स्थापना करते हुए ठेंगड़ी जी ने पश्चिम में मार्क्स द्वारा विकसित विचारों को पूरी तरह से खारिज कर दिया और भारत में संपूर्ण समाज का सनातन, शाश्वत और कालातीत संस्कृति के आधार पर विचार किया। इसी आधार पर उन्होंने राष्ट्र हित और श्रमिकों के हितों को प्राथमिकता दी और बताया कि किस प्रकार वे परस्पर पूरक हैं। कम्युनिस्टों के द्वारा दी गयी ‘हमारी मांगें पूरी हों, चाहे जो मजबूरी हों’ तथा भारतीय मजदूर संघ की ओर से दिये जाने वाले ‘देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम’ इन दो नारों से दो संगठनो के बीच आधारभूत अंतर स्पष्ट दिखता है।
भारतीय मजदूर संघ तथा अन्य संगठनों के गठन की पद्धति भिन्न है। अन्य संगठन 4-5 लोगों को इकट्ठा कर सदस्य बना लेती हैं और काम करना शुरू कर देती है पर भारतीय मजदूर संघ यदि किसी उद्योग में एक संगठन बनाना चाहता है तो अपने देश में मौजूद कानून के आधार पर एक संगठन बनाना, एक बार संगठन बन जाने के बाद उसे पंजीकृत करना, फिर पंजीकृत संगठन को भारतीय मजदूर संघ से संबद्ध करना। इस तरह के एक पंजीकृत और संलग्निक संगठन को संबंधित उद्योग में श्रमिकों को सदस्य बनाने का अधिकार प्राप्त होता है। इस संगठन की सदस्यता भारतीय मजदूर संघ की सदस्यता होती है।

भारतीय मजदूर संघ के वैशिष्ठ पूर्ण विचार-
राष्ट्रीय दृष्टिकोण
भारतीय मजदूर संघ की स्थापना भारत के गौरव,वैभव, इतिहास और भारतीय संस्कृति के आधार पर की गई है। भारतीय मजदूर संघ ने कभी भी ‘चाहे जो मजबूरी हो, हमारी मांगें पूरी हों’ की मान्यता नहीं रखी है। लेकिन भारतीय मजदूर संघ का सिद्धांत श्रमिकों के लिए बनाए गए संगठन में राष्ट्र के हितों और उद्योग के हितों को प्राप्त करने के बाद श्रमिकों के हितों को प्राप्त करना है। भारतीय मजदूर संघ का विचार है कि देश और उद्योग के हित में ही श्रमिकों का हित शामिल है। यदि राष्ट्र खड़ा है तो श्रमिकों का अहित नहीं हो सकता। यदि श्रमिक आर्थिक रूप से मजबूत हो जाता है तो वह अपने राष्ट्र का कभी भी पतन नहीं होने देगा। श्रमिक हित और राष्ट्रहित एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, इसलिए श्रमिक हित और राष्ट्रहित दोनों को एक ही दिशा में चलना चाहिए। टीम भावना से काम करने की पद्धति है।
जिस समय देश पर संकट आया, उस समय भारतीय मजदूर संघ ने अपने आंदोलन और मांगों को एक तरफ रख दिया और अपने प्रथम कर्तव्य के रूप में भारतीय सेना और तत्कालीन सरकार को सभी आवश्यक सहायता प्रदान की। 1962 में चीन द्वारा आक्रमण के दौरान, देश में आपातकाल के दौरान और कारगिल युद्ध के दौरान, भारतीय मजदूर संघ के कार्यकर्ताओं ने भारतीय सेना की मदद की। कार्यकर्ताओं ने देश के लिए जो काम किया है वह काबिले तारीफ है।
पूंजी और श्रम परस्पर पूरक हैं
भारतीय मजदूर संघ ने कार्ल मार्क्स और उनके कम्युनिस्ट अनुयायिओं की Have तथा Have Not की वर्ग अवधारणा को खारिज कर दिया और प्रस्तावित किया कि पूंजी और श्रम एक दूसरे के विपरीत नहीं है बल्कि वे परस्पर पूरक हैं। उत्पादन के लिए पूंजी और श्रम दोनों की आवश्यता होती है। भारतीय मजदूर संघ का विचार है कि पूंजी और श्रम को समान सम्मान दिया जाना चाहिए। उद्योगपति कारखाने को चलाने के लिए पैसा लगाता है और मजदूर उद्योग को चालने के लिए श्रम करते हैं। इसलिए उद्योगपति और श्रमिक को उस उद्योग का संयुक्त भागीदार होना चाहिए तभी उद्योग और समाज की समग्र प्रगति और समाज में रहने वाले श्रमिक सुखी होंगे।
आंदोलन के संबंध में भूमिका
भारतीय मजदूर संघ ने कहा कि मजदूरों की हड़ताल से सब कुछ हासिल किया जा सकता है। यह भारतीय मजदूर संघ की भूमिका नहीं है। भारतीय मजदूर संघ ने सुलह और चर्चा के माध्यम से श्रमिकों की समस्याओं को हल करने का प्रयास किया है। ऐसे समय में जब चर्चा के दरवाजे बंद हो चुके हैं, भारतीय मजदूर संघ ने अंतिम उपाय के रूप में हड़ताल जैसे हथियार का इस्तेमाल किया है। भारतीय मजदूर संघ ने कभी विद्रोह नहीं किया। भारतीय मजदूर संघ ने रचनात्मक और सकारात्मक उपायों के माध्यम से ही श्रमिकों को एक राष्ट्रवादी, आदर्शवादी व वैचारिक संगठन के रूप में पेश किया जा सकता है।
समाज समरस कार्य
भारतीय मजदूर संघ लोकतंत्र में विश्वास करता है। जाति, पंथ, लिंग आदि की परवाह किये बिना सभी कार्यकर्ता एक हैं ऐसी धारणा भारतीय मजदूर संघ की होने के कारण भारतीय मजदूर संघ के दरवाजे सभी के लिए हमेशा खुले हैं। भारतीय मजदूर संघ का पदाधिकारी किस जाति और धर्म का है, यह प्रश्न ही नहीं उपस्थित होता।
गैर राजनीतिक संगठन
भारतीय मजदूर संघ एक गैर राजनीतिक संगठन है। भारतीय मजदूर संघ का किसी भी राजनीतिक दल से कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है। उद्योग और श्रमिकों के हितों को बढ़ावा देने वाली कोई भी पार्टी सत्ता में हो या न हो, भारतीय मजदूर संघ ने उनके बारे में हमेशा सकरामत्मक सहयोगी रुख अपनाया है। भारतीय मजदूर संघ का स्पष्ट मत है कि कोई भी संगठन निर्णय लेने में संतुलन तभी बना सकता है जब वह गैर राजनीतिक हो।
अधिकार और कर्तव्य
भारतीय मजदूर संघ ने श्रमिकों को उनके अधिकारों के साथ-साथ उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया है। भारतीय मजदूर संघ संबद्ध कामगार यूनियनों के माध्यम से अधिकारों और कर्तव्य का उचित समन्वय प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है। भारतीय मजदूर संघ ने पाश्चात्य संस्कृति को न मानकर भारतीय संस्कृति के आधार पर सामाजिक व्यवस्था बनाने का निर्णय लिया है। ‘तेरा तुझको अर्पित, क्या लागे मेरा’ यह भारतीय मजदूर संघ का नारा है क्योंकि यह इसी विश्वास का मुख्य कारण है कि भारतीय मजदूर संघ मानता है कि सारी पूंजी का स्वामी ईश्वर है।
प्रत्युत्तररात्मक सहयोग
भरतीय मजदूर संघ किसी भी सरकार या व्यवस्थापन मंडल को उस हद तक सहयोग करेगा, जितना सरकार या व्यवस्थापन मंडल मजदूरों की समस्याओं को हल करने में भारतीय मजदूर संघ को सहयोग देगा। इस तरह भारतीय मजदूर संघ के संतुलित व्यवहार की नीति के कारण कोई भी उसे संदेह की दृष्टि से नहीं देखता है। इस प्रकार के लेन-देन के कारण भारतीय मजदूर संघ के कार्यकर्ताओं ने समाज के सामने एक मार्गदर्शक सिद्धांत रखा है। दलगत राजनीति से दूर रहकर और ‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ के रास्ते पर चलकर भारतीय मजदूर संघ ने एक मजबूत स्थिति बना ली है।
भारतीय मजदूर संघ की नीति
भारतीय मजदूर संघ सबसे पहले मांग करने वाला था कि जिस तरह केंद्र सरकार अपनी विदेश नीति और आर्थिक नीति तय करती है और उसकी घोषणा करती है, उसी तरह मजदूरों और आम जनता के लिए भी अलग-अलग नीतियां निर्धारित की जानी चाहिए।
श्रम नीति
भारतीय मजदूर संघ ने मांग की कि सरकार की एक श्रम नीति होनी चाहिए, जिससे देश के करोड़ों कामगारों को रोजगार, सेवा नियमों और सामाजिक सुरक्षा उपायों के संबंध में स्पष्ट और उचित प्रावधान उपलब्ध हो सकेंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले श्रमिकों को वर्षभर रोजगार उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक नीतियां बनाई जानी चाहिए ताकि वे शहरों की ओर पलायन न करें। श्रम और पूंजी का समान महत्व होना चाहिए और श्रम के मूल्य को निर्धारित करने और श्रम को प्रबंधन में शामिल करने के लिए प्रावधान किया जाना चाहिए।


वेतन नीति
देश में एक सुविचारित, पारदर्शी वेतन नीति होनी चाहिए जो वेतन असमानताओं को कम करे। इसके लिए न्यूनतम मजदूरी प्रणाली बनाने की जरुरत है। हर बार मजदूरी में वृद्धि महंगाई के कारण होती है लेकिन भारतीय मजदूर संघ इस प्रथा को खारिज करता है। भारतीय मजदूर संघ के मतानुसार मूल्य वृद्धि के अनुपात में महंगाई भत्ता प्रदान कर वास्तविक वेतन स्तर को संतुलित किया जाना चाहिए। किसी भी संस्थान में न्यूनतम और अधिकतम वेतन का अनुपात 1:10 से अधिक नहीं होना चाहिए। सरकार या प्रबंधन और श्रमिक संघों के बीच सामूहिक सौदेबाजी के माध्यम से किए गए द्विपक्षीय समझौतों को तीसरे पक्ष यानी समाज या राष्ट्र पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी विचार करना चाहिए। इसके लिए सभी दलों में देश के साथ-साथ समाज के प्रति प्रतिबद्धता का भाव होना जरूरी है।
मूल्य नीति
प्रत्येक वस्तु का मूल्य सुसंगत होना चाहिए। ज्यादा मुनाफाखोरी से काला धन पैदा होता है और इससे समाज अटपटा हो जाता है, समाज में अराजकता पैदा हो जाती है। उद्यमियों और किसानों को उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं का उचित मूल्य मिलना चाहिए और वह कीमत उपभोक्ता की क्रयशील के अनुपात में होनी चाहिए। ऐसा करने से देश तेजी से तरक्की करेगा।
उत्पादन मूल्य नीति
भारतीय मजदूर संघ ने मांग की कि प्रत्येक डिब्बाबंद उत्पाद को उस उत्पाद की अधिकतम ब्रिक्री मूल्य के बजाय उस उत्पाद का उत्पादन मूल्य लिखना चाहिए। उदाहरण उपभोक्ताओं से एक लीटर पानी की बोतल के लिए 20 रुपये लिए जाते हैं। साथ ही 50 आलू के चिप्स की कीमत 10 रुपये ली जाती है। 1 लीटर पानी को प्रोसेस करके एक बोतल में भरकर उस पर लाभ जोड़ने पर उस बोतल की कीमत 8 रुपये होती है? आलू के सीजन में आलू की चिप्स बनाने के बाद जो 10 रुपये प्रति किलो मिलता है, उस पर मुनाफा वसूलने के बाद 15 रुपये का भाव आता है? कुल मिलाकर उत्पादन मूल्य कम होता है और उस पर 500 से 600 प्रतिशत मुनाफा वसूला जाता है। इसके लिए उत्पादन नीति का होना आवश्यक प्रतीत होता है, जिससे अत्यधिक मुनाफाखोरी, काले धन पर अंकुश लगेगा तथा ग्राहकों को सही कीमत पर समान मिलेगा। इससे समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता को दूर करने में मदद मिलेगी।
प्रौद्योगिकी नीति
सबसे पहले भारतीय मजदूर संघ ने मांग की थी कि सरकार को तकनीक के संबंध में To Adopt, To Reject, To Evolve की नीति अपनानी चाहिए। किसी भी तकनीकि को विदेशों से आंख मूंदकर लाना उचित नहीं है। हमें यह तय करना है कि कौन सी तकनीक को त्यों का त्यों स्वीकार किया जाए, किस तकनीक को आंशिक रूप से संशोधित करके आवश्यकता के अनुसार बनाया जाए और फिर स्वीकार किया जाए या जो तकनीक हमारे देश के लिए हानिकारक है, उसे स्वीकार किया जाए या नहीं। क्या हमारे देश में लघु उद्योग, कुटीर उद्योग के लिए जो तकनीक जरूरी है, क्या हम उसका विकास कर सकते हैं? भारतीय मजदूर संघ ने एक प्रौद्योगिकी आयोग की स्थापना की मांग की ताकि देश, अतीत और प्रौद्योगिकी से संबंधित मुद्दों आदि पर स्थिति के आधार पर उचित निर्णय लिया जा सके।
[18:26, 10/12/2024] +91 93055 90103: भारतीय मजदूर संघ उ.प्र. के 70वें वर्ष में कार्य का लक्ष्य
भारतीय मजदूर संघ उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा गैर राजनीतिक श्रमिक संगठन है। इसकी स्थापना भोपाल में महान विचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी जी द्वारा प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के जन्मदिवस 23 जुलाई 1955 को हुई। भारत के अन्य श्रम संगठनों की तरह यह किसी संगठन के विभाजन के कारण नहीं बना वरन एक विचारधारा के लोगों को सम्मिलित प्रयास का परिणाम है।
यह देश का पहला मजदूर संगठन है, जो किसी राजनैतिक दल की श्रमिक इकाई नहीं, बल्कि मजदूरों का, मजदूरों के लिए, मजदूरों द्वारा संचालित अपने में स्वतंत्र मजदूर संगठन है। भारतीय मजदूर संघ उत्तर प्रदेश 1957 में अपने स्थापना के पश्चात द्रुत गति से उन्नति करते हुए वर्तमान में 7 महासंघ 792 यूनियनों के साथ 18 लाख सदस्य संख्या है।
भारतीय मजदूर संघ उ.प्र. ने अपने स्थापना के 54 वर्ष पूरे होने परर यानि की वर्ष 2011 में 14 लाख से अधिक सदस्यता दर्ज कर प्रदेश का पहले नंबर का श्रमिक संगठन बना और यह सदस्यता वही पर रुकी नहीं, ना ही कम हुई बल्कि आज वर्तमान वर्ष 2023 में सदस्य संख्या लगभग 18 लाख है।
भारतीय मजदूर संघ उ.प्र. आज 792 यूनियन, संगठित व असंगठित क्षेत्र के 7 महासंघ के साथ लगभग 18 लाख सदस्यता संख्या वाला एकमात्र संगठन है। जैसा कि विदित है कि भारतीय मजदूर संघ उ.प्र. की स्थापना से लेकर 2025 में 68 वर्ष पूर्ण करने जा रहे हैं। इसकी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए संख्या, गुण, वित्त भारतीय मजदूर संघ का काम एवं संगठन विस्तार हेतु एवं तीव्र गति से बढ़ाने हेतु वर्ष 2025 तक भारतीय मजदूर संघ को लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए।
1. संख्यात्मक
2. गुणात्मक
3. वित्त संबंधी
संख्यात्मक-
भारतीय मजदूर संघ परिवार को 2025 तक संख्यात्मक रूप से वृद्धि करने के लिए निम्न बिंदुओं पर काम करना चाहिए।
. अभी प्रदेश में कुल 75 जिले हैं और भारतीय मजदूर संघ सभी जिलों में पहुंच चुका है।
. अभी प्रदेश में विकासखंड 822 हैं और भारतीय मजदूर संघ का सभी विकासखंडों में काम होना चाहिए। 2025 तक प्रत्येक विकास खंड के स्तर पर भारतीय मजदूर संघ उ.प्र. से इकाई खड़ी होनी चाहिए।
. प्रदेश में कुल 90 हजार से अधिक गांव हैं। प्रदेश मे कुल ग्राम पंचायत 58189 हैं, प्रत्येक ग्राम पंचायत में भारतीय मजदूर संघ की संगठनात्मक इकाई खड़ी करनी है।
.संगठित क्षेत्र के महासंघ को अपनी सबसे छोटी इकाई पर संगठन स्वरूप बनाना चाहिए। प्रत्येक महासंघ को 2025 तक अपने लक्ष्य निर्धारित कर कार्य करना चाहिए।
. असंगठित क्षेत्र के महासंघ अपनी जिला इकाई बनाएं।
. प्रदेश के अस्पतालों में भारतीय भारतीय मजदूर संघ का काम खड़ा करना और इकाई बनाना।
.राज्य कर्मचारी विभागों में भारतीय मजदूर संघ का काम बढ़ाना।
.चैरिटेबल ट्रस्टों में भारतीय मजदूर संघ का काम खड़ा करना जैसे कि मंदिर, मठ आदि।
. शिक्षा संस्थानों में भारतीय मजदूर संघ का काम खड़ा करना।
. ऑटोनोमस बोडीज के संस्थानों में भारतीय मजदूर संघ का काम खड़ा करना।
. प्रदेश के प्रत्येक विकास प्राधिकरण में काम खड़ा करना।
.स्टेट पब्लिक सेक्टर में काम खड़ा करना।
गुणात्मक-
वर्ष 2025 तक गुणात्मक रूप में वृद्धि हेतु निम्न रूप से लक्ष्य निर्धारित करना है।
. सभी स्तरों पर पुरुष, महिला एवं युवा अभ्यास वर्ग निर्धारित करना एवं प्रत्येक स्तर पर सुनिश्चित करना कि अभ्यास वर्ग कब, कहां और किसके द्वारा होगा, वार्षिक कैलेंडर में इंडिग करना।
. प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना क्षेत्र अनुसार सुनिश्चित करना।
. हर क्षेत्र में उस क्षेत्र की भाषा के अनुसार साहित्य प्रकाशन का काम होना चाहिए।
. सेवा कार्य जैसे की गरीबी, कुपोषण, बीमारी, बाढ़, जल आपूर्ति व अन्य गंभीर समस्या खोज कर अपने जिले में कोई एक सेवा कार्य अवश्य चलाएं इस कार्य हेतु भारतीय मजदूर संघ उ.प्र. के पदमुक्त कार्यकर्ताओं को सेवा से जोड़ा जाना चाहिए।
. भारतीय मजदूर संघ उ.प्र. के वरिष्ठ कार्यकर्ता बंधु/भगिनी का बीएमएस की रोजगार नीति, वेतन निर्धारण नीति इत्यादि जैसे गंभीर विषय पर अभ्यास वर्ग करना।
वित्त संबंधी-
वित्त कोष वृद्धि के लिए 2025 तक का लक्ष्य प्राप्ति के लिए-
. भारतीय मजदूर संघ से संबद्ध प्रत्येक यूनियन व जिला बैंक अकाउंट खुलवाएं।
.सदस्यता शुल्क चेक ऑफ सिस्टम से लेना।
.सदस्यता सूची निर्धारित करना।
.प्रत्येक जिले को वित्तीय आधार पर सक्षम बनाना। लक्ष्य निर्धारित करते हुए धन संग्रह अभियान चलाया जाए, विश्वकर्मा जयंती के उपलक्ष्य में धन समर्पण अभियान चलाये।
. जिला धन संग्रह का केवल 10 प्रतिशत केंद्र और 10 प्रतिशत प्रदेश में जमा करें एवं अन्य शेष 80 प्रतिशत जिले में संगठन की गतिविधि में सदुपयोग करें।
तीनों आयाम (1. संख्यात्मक 2. गुणात्मक 3. वित्त) में वृद्धि हेतु जिला स्तर पर विस्तारक/पूर्ण कालिक निकालने का कार्य शीघ्र कर 70 वर्ष के तय लक्ष्य प्राप्ति की ओर बढ़ना चाहिए।